Wednesday, November 11, 2009

काव्योत्पल से- ब्रजराज किशोर कश्यप- सीमित साधन

हिन्दी साहित्य सभा टोरांटो के तत्वाधान में प्रकाशित टोरांटो के कुछ कवियों की कविताओं की पुस्तक, काव्योत्पल, इसी साल मई में विमोचित हुई। इसी पुस्तक से प्रस्तुत है आज ब्रजराज किशोर कश्यप की कविता।

श्री ब्रजराज किशोर कश्यप की काव्योपहार नाम की अपनी कविता की पुस्तक भी प्रकाशित है। आपकी रचनायॆं कनाडा और अमेरिका की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आप हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, संस्कृत, बंगला, अंग्रेज़ी और फ़्रेंच में भी लिखते हैं। ’हिन्दी इन्स्टिट्यूट आफ़ लर्निंग’ में आप हिन्दी व संस्कृत के शिक्षक भी हैं। आपकी कविताओं में विषय तथा भाव की विविधता है।


सीमित साधन


साधन सभी जग सीमित हैं
किसने पाई शक्ति असीमित?
अपने संसाधन सीमित लख
क्यों होते हो इतने चिंतित?

सीमित साधन ही ले-लेकर
लोग कर गये अद्भुत कृतियाँ
कर्मठ व्यक्ति हुये वे सब ही
अमर हो गईं उनकी स्मृतियाँ

अपने संसाधन बटोर कर
नियत कार्य तुम करते जाओ,
कर के मन एकाग्र सदा तुम

प्रगति पथ पर बढ़ते जाओ

यहाँ विरोधाभास एक है
सीमित साधन वालों ने ही

प्राय: अनुपम कार्य किये हैं
जग विख्यात हुये वे सब ही

संसाधन-प्रबंध करना ही
मैनेजमेंट की एक कला है
संसाधन-बाहुल्य अधिकतर
उच्छृंखलता उपजाता है
संसाधन सीमित होना ही
कठिन परिश्रम सिखलाता है

अत: त्याग कर साधन-गणना
संसाधन-प्रबंध अपनाओ
कर डालो कुछ कर्म अनूठे
अपनी किंचित ख्याति बनाओ।